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Fish swimming from right to left आर्यान : एक अलोकिक योद्धा एक ऐसे योद्धा की कहानी जिसके आगे इंसान तो क्या देवता भी झुक गये. जुड़िये हमारे साथ इस रोमांचित कर देने वाले सफ़र पर .... कहानी प्रारंभ - बदले की भावना शीर्षक से

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Saturday 29 August 2015

नयन हमारे : सपन तुम्हारे 3

पेज – 24

“विरूप ! विरूप” विद्युतजिह्वा पुकारता हुआ सीधे विरूप अरूप के कक्ष में प्रवेश कर गया उसके पीछे पीछे सारमा भी थी. कक्ष में एक चर्वी का दिया जल रहा था. जिसके प्रकाश से दिख रहा था की विरूप और अरूप बिस्तर में सो रहे है कक्ष के एक कोने में एक बूढा दानव, उसकी पत्नी, एक लगभग बीस वर्ष का युवक , लगभग सोलह वर्ष की सुन्दर सी लड़की एक दुसरे से चिपके हुए डरे डरे से बैठे हुए थे चारो ही जग रहे थे उनकी आँखे रो रो कर सूजी हुई थी.

दरवाजे पर हुई आहट से विरूप और अरूप दोनों जग गए उठ कर बैठे अचानक आये विद्युतजिह्वा को देख कर उन्हें आश्चर्य हो रहा था.

“विद्युतजिह्वा तुम इस समय ? सब कुशल तो है ?” विरूप ने पूछा

“ये चारो कौन है?” विद्युतजिह्वा ने बिना किसी औपचारिकता के पूछा

“मेरे दास है मुझसे ऋण लिया था चूका नही पाए इसलिए अब मेरे दास है” विरूप ने कहा

“इन बूढ़े लोगो को दास बनाने से लाभ ?” विद्युतजिह्वा ने पूछा

“ इन बूढों को तो सुबह ही मार कर फेक देगे काम तो ये जवान आयेगे, लेकिन तुम्हे इनसे क्या ?” अरूप ने कहा

“ऐसा कुछ भी नही करोगे तुम इन्हें छोड़ दो” विद्युतजिह्वा ने कहा

“छोड़ दे ? इन्हें छोड़ दे लेकिन क्यों?” विरूप ने पूछा

“क्यों की मै कह रहा हूँ” विद्युतजिह्वा ने कहा

“विद्युतजिह्वा तुम होश में तो हो या आज मदिरा ज्यादा पी ली है ? तुम कह रहे हो तो हम इन्हें छोड़ दे  भूल गए तुम्हे हमने तब शरण तब दी थी जब तुम बच्चे थे रास्ते में ठोकर खाते घूम रहे थे तुम अभी भी हमारे घर में खड़े हो हमसे इस तरह से बात करने का अर्थ जानते हो ?” अरूप ने गुस्से में पूछा

“बहुत साधारण सा अर्थ है ऋण के बदले में दास बनाना या बेमतलब किसी को भी मार देना मुझे पसंद नहीं है” विद्युतजिह्वा ने कहा

“नीच कही के हमारा आश्रित हो कर हमसे शासक की तरह बात करते तुम्हे शर्म नही आती” बिरूप ने कहा

“अर्थात तुम मेरी बात नही मानोगे” विद्युतजिह्वा ने क्रोध में पूछा

“ बात मानेगे ? अरे हम तुम्हे तुम्हारी उद्दंडता की सजा देगे” बिरूप ने कहा

“तो ठीक है अब मै तुम्हे खड़क की भाषा में समझाऊगा” इतना कह कर विद्युतजिह्वा ने बड़ी फुर्ती में उछल कर विरूप अरूप के पास पहुच कर अपने खड़क से एक ही बार में दोनों सर उनके धड से अलग कर दिए सब कुछ इतनी फुर्ती में हुआ की किसी को सोचने का समय ही नहीं मिला ,
“ये क्या किया?” सारमा बहुत जोर से चीखी

विद्युतजिह्वा ने डरे हुए चारो को देख कर कहा “ मैंने इन्हें दासता से मुक्त कर दिया”

तब तक बूढा दानव विद्युतजिह्वा के पास आ कर बोला “आप कौन है ? जिसने हम अंजानो के लिए अपने आश्रय दाता को मार दिया”

“मै कालिकेय राजकुमार विद्युतजिह्वा हूँ मै आपको दासता से मुक्त करता हूँ जाइये आप चारो अब स्वत्रन्त्र है” विद्युतजिह्वा ने कहा

“आप कालिकेय राजकुमार ? परंतू कालिकेय राजा को तो सुकेतु दैत्य ने मार दियां अब तो कालिके में भी दैत्य शासन है” बूढ़े दानव ने हाथ जोड़ कर कहा

“नही मान्यवर मेरे पिता को मार सके दैत्यों में इतना साहस नहीं है मेरे पिता की सुकेतु ने छल से मेरे माँ के हाथो सोते समय हत्या करवाई थी और कालिके में किसी का शासन नहीं है मेरे पिता का शासन था अब बहुत जल्दी मेरा शासन होगा” विद्युतजिह्वा ने कहा

“राजकुमार आप हमारे प्राण दाता है हम सपरिवार आज से आपके दास हुए अगर आपका आदेश हो तो मई समस्त दानव जाती को एकत्र कर आपकी सेवा में प्रस्तुर कर दू” बूढ़े दानव ने कहा

“आपके कहने पर सारे दानव एकत्र हो जायेगे ?” विद्युतजिह्वा ने पूछा

“मेरे कहने पर नही परन्तु इन विरूप और अरूप की लाशे देख कर सब दानव खुश हो जायेगे हम दानवों पर इन दैत्यों का बहुत आतंक था परंतू जनबल में कम होने के कारन कोई भी इनसे लड़ने का साहस नही कर पा रहा था अब जब सब को पता चलेगा की हमारे राजकुमार हमारा नेतृत्व करने को तैयार है तो सब एकत्र हो जायेगे” बूढ़े दानव ने कहा

“ठीक है आप सब दानव जाती को एकत्र कर यही लंका में मेरी प्रतीक्षा करे मै अतिशीघ्र लंका को कालिकेय राजधानी बनाऊगा तब मै इन दैत्यों को अनुशासन से रहना सिखाऊगा शासन ब्यबस्था क्या होती है मै बताऊगा” विद्युतजिह्वा ने कहा

इतना कह कर विद्युतजिह्वा चल दिया पीछे सारमा चल दी. विद्युतजिह्वा अपने कक्ष में आ गया सारमा ने तब पूछा “ ये क्या किया आपने इन्हें मार दिया अब सभी दैत्य आपके शत्रु हो जायेगे ?”
“हा मै जानता हूँ लेकिन अब समय आ चूका है जब मै सब को अपना परिचय इस रूप में दू” विद्युतजिह्वा  ने कहा

“आप जानते है ये विरूप और अरूप दैत्य सेनापति सुमाली के बहुत नजदीक वाले थे जब सुमाली को यह पता चलेगा तो रावन कही आपको अपना शत्रु ना समझ ले” सारमा ने बताया

“तो समझाने दो इअसमे गलत भी क्या है? मै तो उसका विरोधी हु भी, यही सत्य है” विद्युतजिह्वा ने कहा

“फिर सूर्पनखा का क्या होगा वो आपसे बहुत प्रेम करती है?” सारमा ने पूछा

“मै भी सूर्पनखा को प्रेम करता हूँ परंतू सूर्पनखा के कारन मै अपनी महत्वाकांक्षा नहीं छोड़ सकता और शायद रावन भी अपनी बहन के कारन अपना लक्ष्य नहीं छोड़ सकता परंतू यह तो निश्चित है लंका मेरी राजधानी बनेगी क्योकि यदि मेरा राज्य हुआ तो तो लंका मेरी है और सूर्पनखा मेरी रानी यदि रावन का राज्य हुआ तो सूर्पनखा से विवाह होने के बाद भी लंका मेरी राजधानी होगी रावन का लक्ष्य तो आर्यावर्त होगा ” विद्युतजिह्वा ने कहा

“राजकुमार जी राजकुमारी का प्रेम परिक्षण जरुर कर लीजियेगा कही धोका न दे दे” सारमा ने हसते हुए कहा

“कोई बात नही अगर सूर्पनखा परिक्षण में असफल हुई तो तुमतो हो मेरी रानी बनने के लिए” विद्युतजिह्वा ने कहा

“मै तो आपकी दासी हूँ बिना रानी बने ही पत्नी धर्म निभा रही हूँ इतने दिनों से” सारमा ने कहा
“तो दूर क्यों खडी हो यहाँ पास आओ पत्नी धर्म निभाओ” विद्युतजिह्वा ने सारमा का हाथ पकड़ कर कहा

“ नही राजकुमार आप अभी विश्राम करे भोर होते ही आपको जाना है हो सकता है विरूप और अरूप की लाशे देख कर कल दैत्य आपको हत्या आरोपी मान कर आपकी तलाश करे आपका चले जाना ही उचित है” सारमा ने कहा

“जीवन भर भागता ही रहूगा क्या” विद्युतजिह्वा ने कहा

“नहीं जब तक आप अपनी शक्ति को एकत्र नही कर लेते तब तक” सारमा ने कहा

“ठीक है मै सोता हूँ तुम भोर में मुझे जगा देना” कह कर विद्युतजिह्वा विस्तार पर लेट गया.

क्रमशः.......
copyright@Ambika kumar sharma


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