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विश्रवा आश्रम में एक
दिन रावण अपने भाइयो के साथ बैठा पिता से वार्तालाप कर रहा था .
“पिताश्री जब प्रकृति
स्वयं अपना संतुलन करती है तो फिर हमें क्यों प्रकृति संतुलन के लिए पेड़ लगाने
पड़ते है क्यों यज्ञ करने पड़ते है क्या जरुरत है इसकी ?”
रावन ने जिज्ञासा प्रगट की
“पुत्र यह हम सब का
दायित्व है कि प्रकृति संतुलन मे सहयोग करे अन्यथा जब प्रकृति स्वयं अपना संतुलन
करती है तो कभी कभी विनाश तक का मार्ग अपना लेती है फिर प्रकृति तो हमारी पालनहार
है “ विश्रवा ने समझाया
“पिताश्री हम प्रकृति के
रक्छक है तो हमारा रक्छक कौन है ? “ रावन ने पुनः पूछाः
“ नहीं पुत्र हम प्रकृति
के रक्छक नहीं है उसके उपभोग कर्ता है हमारी आने वाली कई पीढियां भी हमारी ही तरह
इसका उपयोग करती रहे इसलिए इसके संतुलन में सहयोगी मात्र है प्रकृति हमें प्राण
बायु देती है उर्जा का संचार करती है इस तरह प्रकृति और हम दोनों एक दूसरे के पूरक
है “ विश्रवा ने समझाया .
“ तो फिर पिताश्री हम
अस्त्र शस्त्र की शिक्छा क्यों लेते है केवल शांति पूर्वक प्रकृति का संतुलन रखते
हुए शांति पूर्वक जीवन यापन क्यों नहीं करते ? “ विभीषण ने पूछां
“ पुत्र हम अस्त्र
शस्त्र का ज्ञान और उपयोग आताताइयो से , दुष्टो से , पापियों से अपनी रक्छा के लिए
करते है “ विश्रवा ने प्यार से बताया
“ अगर पिताश्री आताताई
दुष्ट हमसे ज्यादा बलवान हो तो हमारी रक्छा कौन करेगा ?” विभीषण ने बाल शुलभ
जिज्ञसा बस पूछां
“ तो मेरे प्यारे पुत्र
हम सबके रक्छक विष्णू है “ विश्रवा ने जिज्ञासा शांत की
“ तो क्या विष्णू परम
योद्धा है ? “ रावन ने पूछां
“हाँ पुत्र विष्णू हम
आर्यों के और देवताओ के शुभ चिन्तक और परम योद्धा है” विश्रवा ने बताया
“ आचार्यवर ! ये कैसी
गलत शिक्छा आप मेरे पुत्र को दे रहे है ? “ केकषी ने बार्तालाप में शामिल होते हुए
क्रोध में पूछां
“गलत शिक्छा?देवी केकषी!
ये आप क्या कह रही है? “ विश्रवा
ने आश्चर्य से पूछां
“हाँ आचार्यबर मै सच कह
रही हूँ वो कपटी विष्णू परम योद्धा कैसे हो गया ? उसी कपटी ने धोका दे कर हमारे पर
पिता मह महराज हिरान्याक्छ को मार डाला महराज बलि को धोके से भिछुक बन कर ठग लिया ,आप
बताइए क्या ये कार्य परम योद्धा के है ? “ केकषी ने क्रोध में पूछां
“देवी केकषी श्रीहरीविष्णू
ने सारे कार्य दैत्यों के अत्याचार से पीड़ित देवो और आर्यों के हित में किये है “
विश्रवा ने समझाया
“आचार्यवर देवो के भोग
विलास ,अप्सराओ की सुन्दरता में खोये रहना ,सोमरस के मद में डूबे रहना इन सबका समर्थन
आप उचित मानते है . देवो का तो कोई अपना पौरस
है नहीं कोई विप्पति आई नहीं कि विष्णू के सामने घिघियाने लगे आप ऐसे देवो का
समर्थन करते है ? कम से कम दैत्य तो अपने पौरस के बल पर इन देवो पर अंकुश लगाते है
“ केकषी ने विश्रवा से पूछां
“नहीं देवी ! ऐसा नहीं
है “ विश्रवा ने कहा
“क्यों ? ऐसा क्यों नहीं
है ? कितने ही देवराज इंद्र ऐसे हुए है जिनका आचरण आप आर्यों की संस्कृति को
कलंकित करता है याद है इंद्र ने गौतम आश्रम में उनकी पत्नी अहिल्या के साथ..........”
केकषी बोलते बोलते रुक गई
“देवी केकषी ! “ विश्रवा
क्रोध में चिल्लाये
“कुलपति महोदय ! आपके
क्रोधित होने से सच बदल नहीं जायेगा “ केकसी बोली
“ देवी ! अधूरा ज्ञान ,
अज्ञान से भी ज्यादा घातक होता है . एक ब्यक्ति के दुराचरण से सम्पूर्ण जाति का
आकलन नहीं होता “ विश्रवा अब शांत स्वर में बोले
“ आचार्य वर ! आप तो
आर्यों की भाति देवो की स्तुतिया ही गाते रहेगे कदाचित मै नहीं चाहती मेरा पुत्र
वेदपाठी ब्राह्मण ही बने मै चाहती हूँ मेरा पुत्र योग्य योद्धा बने इसलिए अब आप
मेरे पुत्र को अपने अग्रज अगस्त के यहाँ अस्त्र शस्त्र का ज्ञान सीखने के लिए उनके
पास भेज दे “ केकसी ने अपनी बात विनम्रता
से रखी
“ देवी तुम्हारे विचार
विध्न्सक लग रहे है “ विश्रवा धीरे से बोले फिर स्वमं ही बोले “ कदाचित ही अगस्त
इसके लिए तैयार हो “
“ आप चाहेगे तो सब तैयार
होगे “ केकसी विश्रवा के अति समीप आ कर बोली .
“हां
देवी मै बात करूंगा“ विश्रवा बोले.
आप हिन्दी साहित्य के एक उदीयमान नक्षत्र हैं और आप जल्द ही हिन्दी साहित्य के आकाश में सूरज बन के चमकेंगे।
ReplyDeleteयह आप सब के निर्मल स्नेह और दुआओं का परिणाम है. बहुत बहुत धन्यवाद्
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